व्हाइट हाउस ने शनिवार को एक फैक्टशीट जारी की। इसमें बताया गया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नए H-1B वीजा आवेदनों पर 1 लाख अमेरिकी डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) का बड़ा शुल्क क्यों लगाया। फैक्टशीट में कहा गया कि कम वेतन पर काम करने वाले विदेशी कर्मचारी अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियां ले रहे हैं।
व्हाइट हाउस ने जानकारी दी कि H-1B वीजा वाले आईटी कर्मचारियों की संख्या काफी बढ़ गई है। साल 2003 में यह हिस्सा 32% था, जो हाल के वर्षों में बढ़कर 65% से ज्यादा हो गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में कंप्यूटर साइंस स्नातकों की बेरोजगारी दर 6.1% और कंप्यूटर इंजीनियरिंग स्नातकों की 7.5% तक पहुंच गई है। यह जीव विज्ञान या कला इतिहास जैसे विषयों के स्नातकों की बेरोजगारी दर से दोगुनी है। 2000 से 2019 के बीच अमेरिका में विदेशी STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग, गणित) कर्मचारियों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई, जबकि कुल STEM नौकरियों में सिर्फ 44.5% की ही वृद्धि हुई।
व्हाइट हाउस ने कुछ कंपनियों का उदाहरण भी दिया। एक कंपनी को वित्त वर्ष 2025 में 5,189 H-1B कर्मचारियों की मंजूरी मिली, लेकिन उसने लगभग 16,000 अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियां खत्म कर दीं। दूसरी कंपनी को 1,698 H-1B मंजूरियां मिलीं, फिर भी उसने ओरेगन में 2,400 अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी की। तीसरी कंपनी ने 2022 से अब तक 27,000 अमेरिकी कर्मचारियों की संख्या घटा दी, जबकि उसे 25,075 H-1B मंजूरियां मिलीं। एक और कंपनी ने 1,137 H-1B मंजूरियां लेने के बाद भी फरवरी में 1,000 अमेरिकी नौकरियां कम कर दीं।
व्हाइट हाउस का कहना है कि H-1B वीजा पर 1 लाख डॉलर का शुल्क लगाने का फैसला अमेरिकी कर्मचारियों को प्राथमिकता देने और उनकी नौकरियां वापस लाने की दिशा में उठाया गया कदम है।
फैक्टशीट में कहा गया, ‘मतदाताओं ने राष्ट्रपति ट्रंप को अमेरिकी कामगारों को प्राथमिकता देने का जनादेश दिया है। वे हर दिन इस वादे को पूरा करने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियां वापस लाने और अमेरिका में नए निवेश के लिए नए व्यापार समझौते भी किए हैं।’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद सभी रोजगार लाभ अमेरिकी मूल के कामगारों को मिले हैं, जबकि राष्ट्रपति बाइडेन के कार्यकाल में यही लाभ ज्यादातर विदेशी मूल के कामगारों को मिला था।