प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर यह साबित किया है कि उनकी राजनीति का केंद्रबिंदु केवल सत्ता नहीं, बल्कि नागरिकों की समृद्धि और सुविधा है। अक्सर सरकारें छोटे-छोटे उपायों से जनता को खुश करने की कोशिश करती हैं, लेकिन मोदी का दृष्टिकोण अलग है— वह नागरिकों को वास्तविक राहत देने वाले बड़े कदम उठाना पसंद करते हैं। इसी साल के आम बजट में आयकर में 12 लाख रुपए तक की आय को कर से दी गई ऐतिहासिक छूट ने हर वर्ग के करदाताओं को अप्रत्याशित राहत दी थी। उस समय भी यह माना गया था कि सरकार ने जनता को अपनी प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखा है और अब जीएसटी दरों में व्यापक संशोधन करके, देशवासियों को दिवाली से एक महीने पहले ही ऐसा “बम्पर गिफ्ट” दिया गया है जिसकी कल्पना भी मुश्किल थी।
दैनिक आवश्यक वस्तुओं से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा और उद्योगों तक पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा। उपभोक्ता को सीधे राहत, उद्योगों को प्रोत्साहन और बाजार को गति मिलना इस निर्णय की तीन बड़ी उपलब्धियाँ हैं। यही कारण है कि उपभोक्ताओं में हर्ष है, उद्योग जगत ने स्वागत किया है और शेयर बाज़ार में उछाल देखा जा रहा है। यह सब केवल आर्थिक निर्णय नहीं है, बल्कि नागरिकों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी की चिंता और उनकी समृद्धि के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। मोदी का यह प्रयास दर्शाता है कि वह अवसरों को केवल राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि जनता को ठोस राहत पहुँचाने के लिए साधन बनाते हैं।
यह फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार करेगा और त्योहारों के मौसम में आम जनमानस को उत्साह और विश्वास से भर देगा। मोदी ने वास्तव में दीवाली पर देश को खुश करने का वादा पहले ही पूरा कर दिया है। यह “दीवाली गिफ्ट” केवल आर्थिक राहत नहीं, बल्कि विश्वास और आश्वासन का प्रतीक भी है कि सरकार जनता के साथ खड़ी है और उसकी प्रगति के लिए कटिबद्ध है।
इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से ‘कम कर, सरल कर व्यवस्था’ का जो वादा किया था, उसे 20 दिनों के भीतर पूरा कर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस बयान का भी व्यावहारिक उत्तर दिया है जिसमें उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘मृत’ करार दिया था। देखा जाये तो आज का भारत अपनी आर्थिक स्फूर्ति और वैश्विक महत्व को सिद्ध कर रहा है।
जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक में लिये गये निर्णयों को देखें तो साफ प्रतीत होता है कि कर प्रणाली में सुधार केवल आंकड़ों का खेल नहीं है बल्कि यह सीधे-सीधे आम नागरिक की ज़िंदगी से जुड़ा हुआ प्रश्न है। 22 सितम्बर से लागू होने वाले बदलावों ने जहाँ एक ओर रोज़मर्रा की ज़रूरी वस्तुओं को सस्ता कर घर-घर को राहत दी है, वहीं दूसरी ओर कुछ क्षेत्रों पर कर का बोझ और भारी कर दिया है। हम आपको बता दें कि सबसे बड़ी राहत खाद्य पदार्थों और घरेलू उपयोग की वस्तुओं में आई है। दूध, घी, पनीर, बिस्कुट, चॉकलेट, सूखे मेवे, नमकीन—इन सब पर कर घटने से उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। किसानों और शिक्षा-स्वास्थ्य क्षेत्र को भी बड़ी राहत दी गई है। यह कदम न सिर्फ उपभोक्ताओं को राहत देता है, बल्कि छोटे व्यवसायों और मझोले उद्योगों की साँस भी आसान करता है।
ऑटोमोबाइल, नवीकरणीय ऊर्जा और निर्माण क्षेत्र को भी कर छूट देना इस बात का संकेत है कि सरकार रोजगार और औद्योगिक विकास को गति देना चाहती है। इससे उत्पादन और खपत दोनों को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। कोयले पर कर बढ़ाकर 18% करना ऊर्जा-निर्भर उद्योगों पर बोझ डालेगा। “सिन गुड्स” पर 40% का नया स्लैब निश्चित ही स्वास्थ्य नीति की दृष्टि से उचित है, परन्तु इससे कर चोरी और तस्करी जैसी प्रवृत्तियों को रोकने की चुनौती भी बढ़ेगी। लग्ज़री कारों और प्रीमियम वस्तुओं पर ऊँचा कर बनाए रखना एक प्रकार से आय असमानता को संतुलित करने की कोशिश है, परंतु आम उपभोक्ता बिजली और ईंधन की बढ़ती कीमतों के असर को झेलेगा।
सरकार के फैसले से क्या सस्त होगा और क्या महंगा, यदि इस पर नजर डालें तो सबसे पहले उन उत्पादों की चर्चा करते हैं जिनके दाम घटने वाले हैं।
जीएसटी 2.0: क्या होगा सस्ता
भोजन और रोज़मर्रा की आवश्यक वस्तुएँ
दुग्ध उत्पाद: यूएचटी दूध अब कर-मुक्त होगा (पहले 5%), जबकि कंडेंस्ड मिल्क, मक्खन, घी, पनीर और चीज़ 12% से घटकर 5% या कुछ मामलों में शून्य पर आ गए हैं।
मुख्य खाद्य पदार्थ: माल्ट, स्टार्च, पास्ता, कॉर्नफ्लेक्स, बिस्कुट, यहाँ तक कि चॉकलेट और कोको उत्पादों पर कर 12–18% से घटकर 5% हो गया है।
मेवे और सूखे मेवे: बादाम, पिस्ता, हेज़लनट, काजू और खजूर, जिन पर पहले 12% कर था, अब केवल 5% लगेगा।
चीनी और मिष्ठान्न: रिफाइंड शुगर, शुगर सिरप और टॉफ़ी, कैंडी जैसे कन्फेक्शनरी उत्पाद अब 5% स्लैब में होंगे।
अन्य पैकेज्ड फूड: वनस्पति तेल, पशु वसा, खाने योग्य स्प्रेड, सॉसेज, मीट प्रोडक्ट्स, फिश प्रोडक्ट्स और माल्ट-आधारित पैकेज्ड फूड्स को भी 5% वर्ग में रखा गया है।
नमकीन और स्नैक्स: नमकीन, भुजिया, मिक्सचर, चबेना आदि (भुने चने को छोड़कर), जो प्री-पैकेज्ड और लेबलयुक्त हों, उन पर कर 18% से घटकर 5% होगा।
पेयजल और मिनरल वाटर: बिना शक्कर या फ्लेवर वाला प्राकृतिक/कृत्रिम मिनरल वाटर और एरेटेड वाटर 18% से घटकर 5% पर आएगा।
कृषि एवं उर्वरक
उर्वरक: 12%/18% से घटकर 5%।
कुछ कृषि इनपुट जैसे बीज और फसल पोषक तत्व 12% से घटाकर 5%।
स्वास्थ्य और शिक्षा
जीवनरक्षक दवाएँ, स्वास्थ्य-संबंधी उत्पाद और कुछ चिकित्सीय उपकरण 12%/18% से घटाकर 5% या शून्य।
शैक्षिक सेवाएँ और वस्तुएँ (किताबें, लर्निंग एड्स): जीएसटी 5–12% से घटकर शून्य या 5%।
उपभोक्ता वस्तुएँ
इलेक्ट्रॉनिक्स: बेसिक और बड़े पैमाने पर उपयोगी उपकरण 28% से घटकर 18%।
जूते और वस्त्र: 12% से घटाकर 5%।
कागज़ उद्योग: कुछ श्रेणियाँ 12% से शून्य।
कॉस्मेटिक्स और पर्सनल केयर: हेयर ऑयल, शैम्पू, डेंटल फ़्लॉस, टूथपेस्ट 18% से घटकर 5%।
ऑटो सेक्टर
छोटी कारों पर जीएसटी 28% से घटकर 18%।
350 सीसी तक की मोटरसाइकिलों पर जीएसटी 28% से घटकर 18%।
बड़ी कारें और बड़ी मोटरसाइकिलें 40% पर यथावत (अतिरिक्त सेस नहीं)।
सभी कार पार्ट्स पर जीएसटी 18%।
ईवी पर जीएसटी 5% यथावत।
अन्य क्षेत्र
नवीकरणीय ऊर्जा उपकरण: 12% से घटकर 5%।
निर्माण सामग्री: प्रमुख कच्चे माल पर 12% से घटाकर 5%।
खेल सामान और खिलौने: 12% से घटाकर 5%।
चमड़ा, लकड़ी और हस्तशिल्प: 5% स्लैब में।
कुल मिलाकर, किराना, उर्वरक, जूते, वस्त्र, नवीकरणीय ऊर्जा जैसे अनेक क्षेत्रों में व्यापक राहत मिलेगी। इससे आम घरों, छोटे व्यवसायों और मध्यम वर्ग को लाभ होगा।
जीएसटी 2.0 : क्या होगा महँगा
नशीले और हानिकारक उत्पाद
पान मसाला, गुटखा, सिगरेट, चबाने वाला तंबाकू, ज़र्दा, कच्चा तंबाकू और बीड़ी मौजूदा ऊँचे जीएसटी दरों और क्षतिपूर्ति सेस के अंतर्गत ही रहेंगे।
अब इनका मूल्यांकन लेन-देन मूल्य की जगह रिटेल सेल प्राइस (RSP) पर होगा।
सभी ऐसे उत्पाद (जिसमें एरेटेड वाटर भी शामिल), जिनमें शक्कर/स्वीटनर या फ्लेवर मिला हो, 28% से बढ़कर 40%।
विलासिता और प्रीमियम वस्तुएँ
40% का नया स्लैब नशीले और लग्ज़री उत्पादों के लिए लागू रहेगा। इससे सिगरेट, प्रीमियम शराब और हाई-एंड कारों को कर राहत नहीं मिलेगी।
आयातित बख़्तरबंद लग्ज़री सेडान केवल विशेष परिस्थितियों (जैसे राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा आयात) में छूट पाएंगी।
ऊर्जा एवं ईंधन
कोयला: पहले 5% पर था, अब 18%। इससे कोयला-आधारित उद्योगों की लागत बढ़ेगी।
सेवाएँ
“निर्धारित परिसरों” के भीतर चलने वाले रेस्टोरेंट अब 18% जीएसटी के साथ इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा नहीं कर पाएँगे।
कुछ लॉटरी और बिचौलिया सेवाओं के मूल्यांकन नियम फिर से परिभाषित किए गए हैं, जिससे कर का बोझ जस का तस या और बढ़ा रहेगा।
बहरहाल, यह कहना उचित होगा कि नई दरें आम घरों और छोटे कारोबारों के लिए राहत का संदेश लेकर आई हैं, पर साथ ही ऊर्जा और ईंधन पर बढ़े कर यह याद दिलाते हैं कि कर सुधार का रास्ता अभी लंबा है। जीएसटी परिषद को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि यह बदलाव केवल “तात्कालिक राहत” न होकर, एक स्थायी और संतुलित कर व्यवस्था की दिशा में कदम साबित हो। वैसे यह तो स्पष्ट है कि यह कदम न केवल घरेलू खपत को बढ़ावा देगा, बल्कि निवेशकों के भरोसे को भी मजबूत करेगा। उपभोक्ता संतुष्टि, उद्योग जगत की सकारात्मक प्रतिक्रिया और शेयर बाजार की रौनक मिलकर यही संकेत देती हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था आने वाले समय में और तेज़ गति से आगे बढ़ने को तैयार है।